रिट के प्रकार(Types of writs issued by court)
संवैधानिक उपचारों संबंधी मूलाधिकार-(32,33,34 और 35)-
संवैधानिक उपचारों सम्बन्धी मूलाधिकार का प्रावधान अनुच्छेद 32-35 तक किया गया है लेकिन इनमें से अनुच्छेद- 32 बहुत जरूरी है। यह स्वयं में मूल अधिकार माना जा सकता है क्योंकि यह नागरिकों के मूल अधिकारों की रक्षा करता है।
संविधान के भाग- 3 में मूल अधिकारों का वर्णन है।
यदि किसी नागरिक के मूल अधिकारों का राज्य द्वारा उल्लंघन किया जाता है तो उस नागरिक को राज्य के विरुद्ध न्याय पाने के लिए रिट याचिका दाखिल करने का अधिकार प्राप्त है..
संविधान के अनुच्छेद - 32 के अंतर्गत उच्चतम_न्यायालय में रिट (writ) याचिका दाखिल करने का अधिकार नागरिकों को प्रदान किया गया है ।
जबकि
अनुच्छेद - 226 के अधीन उच्च न्यायालय में रिट (writ) याचिका दाखिल करने का अधिकार नागरिकों को प्रदान किया गया है ।
अनुच्छेद - 32 के अनुसार:-
उच्च और सर्वोच्च न्यायालय 5 प्रकार की रिट जारी करती है। उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय ही ऐसी रिट जारी कर सकते हैं। उच्चतम न्यायालय पूरे देश के लिए रिट जारी कर सकता है जबकि जबकि उच्च न्यायालय केवल राज्य में। संविधान में निम्नलिखित आदेशों का उल्लेख
(Types of Writs issued by Courts) है –
1.बंदी प्रत्यक्षीकरण ( Habeas Corpus )-
इसमें किसी को अगर हिरासत में रखा गया है तो उसे प्रस्तुत करने से संबंधित रिट है। इसमें उसे तुरंत न्यायालय के सामने हाजिर करना होता है।अगर उस पर अपराध सिद्ध होता है, तभी उसकी हिरासत बढ़ाई जा सकती है वरना उसे छोड़ दिया जाता है। कोर्ट इसे किसी भी व्यक्ति के लिए जारी कर सकता है।
2.परमादेश (Mandamus )-
यह रिट सिर्फ सरकारी अधिकारी के खिलाफ ही जारी किया जा सकता है। वह भी तब जब सरकारी अधिकारी ने अपने कानूनी कर्तव्य का पालन न किया हो और इसके चलते किसी दूसरे के अधिकारों का हनन हुआ हो। कोर्ट संबंधित व्यक्ति से इसमें पूछता है कि कोई कार्य आपने क्यों नहीं किया है?
लेकिन यह रिट निजी व्यक्ति, गैर संवैधानिक निकाय, विवेकानुसार लिए गए निर्णय, कांट्रैक्ट पर रखे गए लोगों, राष्ट्रपति और राज्यपालों और उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीशों के खिलाफ जारी नहीं की जा सकती है।
3.प्रतिषेध ( Prohibition )-
यह केवल कोर्ट से संबंधित लोगों के खिलाफ ही जारी किया जाता है। जब उनके किसी को गलत तरीके से फायदा पहुंचाने की बात सामने आती है तो हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट इसका प्रयोग करते हैं। इसका प्रयोग केवल विचाराधीन मामले में ही होता है यानि जब मामले की सुनवाई चल रही होती है। यह बड़ा कोर्ट, छोटे कोर्ट के खिलाफ जारी कर सकता है।
4.उत्प्रेषण ( Certiorari )-
यह भी प्रतिषेध के जैसा ही है। इसका मतलब होता है "प्रमाणित होना" या " सूचना_देना"। इसे उच्च न्यायालय अधीनस्थ न्यायालयों या प्राधिकरणों के खिलाफ ही जारी किया जाता था। लेकिन 1991 से इसे प्रशासनिक प्राधिकरणों के खिलाफ भी जारी किया जाने लगा है। यह विधिक निकायों या निजी व्यक्तियों के विरुद्ध जारी नहीं किया जा सकता है। इसमें कोर्ट किसी सरकारी प्रक्रिया से जुड़ी पूछताछ करता है।
5.अधिकार पृच्छा ( Quo Warranto )-
यह सुनिश्चित करने के लिए जारी किया जाता है कि किसी पद पर बैठा हुआ सरकारी कर्मचारी उस पद पर बने रहने के योग्य भी है या नहीं? जिसके खिलाफ यह रिट जारी हुई है, उसे साबित करना पड़ता है कि वह पद उसने गैरकानूनी तरीके से हासिल नहीं किया है। अर्थात् इस रिट (writ) द्वारा न्यायालय लोकपद पर किसी व्यक्ति के दावे की वैधता की जाँच करता है।
इस रिट के माध्यम से किसी लोक पदधारी को अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर जाकर आदेश देने से रोका जाता है। जरूरी भी नहीं कि कोई पीड़ित व्यक्ति ही इस रिट को दायर करे, कोई भी इसको दायर कर सकता है।
विशेष:-
प्रतिषेध तथा उत्प्रेक्षण दोनों ही समान कारणों पर जारी की जाती हैं। परन्तु दोनों में एक मुख्य अन्तर यह है कि प्रतिषेध की रिट तब जारी होती है जब निर्णय न दिया गया हो और उत्प्रेक्षण की रिट तब जारी होती है जब निर्णय दे दिया गया हो, जो उच्च या उच्चतम न्यायालय के अधिकार का उल्लंघन हो। उत्प्रेक्षण ऐसे प्राधिकारी के विरुद्ध भी जारी हो सकता है जो अधिकारिता के भीतर कार्य कर रहा है किन्तु जिसने नैसर्गिक न्याय के सिद्धांतों के विरुद्ध कार्य किया हो।
** प्रतिषेध और उत्प्रेषण- न्यायालय द्वारा सिर्फ न्यायालय के विरुद्ध जारी की जाती है।

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