मौलिक अधिकार, निलंबन और रिट( Fundamental Rights, it's suspension and writs )

भारतीय संविधान में भारतीय नागरिकों के अधिकारों की सुरक्षा हेतु मौलिक अधिकारों का प्रबंध किया गया है। यह अधिकार नागरिक के मूलभूत अधिकार होते हैं। आइए इसे विस्तार से समझने का प्रयत्न करते हैं... 


   मौलिक अधिकारों का वर्णन संविधान के भाग-3 में अनुच्छेद 12 से 35 तक वर्णन किया गया है। भारतीय संविधान में मौलिक अधिकार अमेरिका के संविधान से लिए गये हैं । मौलिक अधिकार वे मूलभूत अधिकार हैं जो किसी व्यक्ति के जीवनयापन हेतु मौलिक एवं अनिवार्य होने के कारण संविधान के द्वारा नागरिकों को प्रदान किये जाते हैं !


आवश्यकता

ये अधिकार व्यक्ति के मानसिक व भौतिक और नैतिक विकास के लिए आवश्यक है ।


उद्देश्य

विधि के शासन की स्थापना करना, संविधान में मोैलिक अधिकारों को शामिल करने का एक उद्देश्य है।


अनुच्छेद 13 के अनुसार – 

मौलिक अधिकार न्यायलय द्वारा प्रवर्तनीय है तथा इनका उल्लंघन करने वाले किसी भी कानून को न्यायालय शून्य घोषित कर सकता है।


मूल संविधान में 7 मौलिक अधिकार दिये गये थे लेकिन 1978 में 44वे संविधान संशोधन द्वारा अनुच्छेद 31 में वर्णित सम्पत्ति के अधिकार को समाप्त करके उसे अनुच्छेद 300 क के तहत कानूनी अधिकार घोषित किया गया है ।


वर्तमान में 6 मौलिक अधिकार हैं-


1.समानता का अधिकार (अनुच्छेद 14 से 18 तक) –

अनुच्छेद 14 के अनुसार:

 सभी व्यक्तियों को राज्य के द्वारा कानून के समक्ष समानता और कानून का समान संरक्षण प्राप्त होगा ।


अनुच्छेद 15 के अनुसार:- 

राज्य किसी भी नागरिक के विरूद्ध धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग तथा जन्म स्थान आदि के आधार पर कोई विभेद नहीं करेगा।

अनुच्छेद 15(3) :

बालकों और स्त्रियों की स्वाभाविक प्रवृत्ति को ध्यान में रखकर उनके संरक्षण के लिये उपबन्ध बनाने का अधिकार  राज्य को प्राप्त है।

अनुच्छेद 15(4):

राज्य सामाजिक और शैक्षणिक दृष्टि से पिछडे और SC, ST के लिए विशेष प्रावधान कर सकता है।



अनुच्छेद 16 के अनुसार:- 

देश के समस्त नागरिकों को शासकीय सेवाओं में अवसर की समानता होगी ।

अनुच्छेद 16(3) 

के अनुसार किसी क्षेत्र में नौकरी देने के लिए निवास सम्बन्धी शर्त लगाई जा सकती है ।

अनुच्छेद 16(4) 

के अनुसार देश के पिछडे नागरिकों को उचित प्रतिनिधित्व के अभाव में आरक्षण की व्यवस्था की जा सकती है।



अनुच्छेद 17 के अनुसार :-

अस्पृश्यता का अन्त किया गया है । इसको समाप्त करने के लिए संसद ने अस्पृश्यता अपराध अधिनियम 1955 के तहत दण्डनीय बना दिया है । बाद में 1976 में इसको संशोधित करके सिविल अधिकार संरक्षण अधिनियम 1976 बनाया गया ।



अनुच्छेद 18 के अनुसार :-

शिक्षा और सैनिक क्षेत्र को छोड़कर राज्य द्वारा सभी उपाधियों का अन्त कर दिया गया है

अनुच्छेद 18(2) के अनुसार:- 

भारत का कोई भी नागरिक किसी भी विदेशी पुरस्कार को राष्ट्रपति की अनुमति के बिना ग्रहण नहीं कर सकता ।




2.स्वतंत्रता का अधिकारः-(अनुच्छेद 19 से 22 तक) –


अनुच्छेद 19 के अनुसार 

नागरिक को 6 प्रकार की स्वतंत्रतायें दी गई है –

अनुच्छेद 19(A)-

भाषण और विचार अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता। अनुच्छेद 19(1) के अन्तर्गत प्रेस को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता दी गई है । इसी के तहत देश के नागरिकों को राष्ट्रीय ध्वज को फहराने की स्वतंत्रता दी गई है ! संविधान के प्रथम संशोधन अधिनियम 1951 के द्वारा विचार एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को सीमित कर दिया गया है। सरकार राज्य की सुरक्षा, सार्वजनिक कानून व्यवस्था, सदाचार, न्यायालय की अवमानना, विदेशी राज्यों से संबंध तथा अपराध के लिए उत्तेजित करना आदि के आधार पर विचार एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर प्रतिबंध लगा सकती है।

अनुच्छेद 19(B)-

के तहत शांतिपूर्ण तथा बिना हथियारों के नागरिकों को सम्मेलन करने और जुलूस निकालने का अधिकार होगा । राज्यों की सार्वजनिक सुरक्षा एवं शान्ति व्यवस्था के हित में इस। स्वतंत्रता को सीमित किया जा सकता है।

अनुच्छेद 19(C)-

भारतीय नागरिकों को संघ या संगठन बनाने की स्वतंत्रता दी गई हैं ! लेकिन सैनिकों को ऐसी स्वतंत्रता नहीं दी गई है

अनुच्छेद 19(D)-

देश के किसी भी क्षेत्र मे स्वतंत्रता पूर्वक भ्रमण करने की स्वतंत्रता ।

अनुच्छेद 19(E)-

देश के किसी क्षेत्र में स्थाई निवास की स्वतंत्रता। (जम्मू कश्मीर को छोड़कर)

अनुच्छेद 19(G) 

कोई भी व्यापार या कारोबार करने की स्वतंत्रता ।



अनुच्छेद 20 के अनुसार :-

अपराधों के लिए दोष सिद्धि के संबध में संरक्षण दिया गया है-

1. किसी भी व्यक्ति को तब तक अपराधी नहीं माना जाएगा जब तक यह सिद्ध न हो जाये कि उसने किसी कानून का अल्लंघन किया है ।

2. किसी व्यक्ति को किसी अपराध के लिए उससे अधिक दण्ड नहीं दिया जा सकता ।

3. किसी व्यक्ति को एक ही अपराध के लिए एक बार से अधिक दण्ड नहीं दिया जा सकता ।

4. किसी भी व्यक्ति को स्वयं अपने विरूद्ध गवाही देने या सबूत पेश करने के लिये बाध्य नहीं किया जा सकता ।



अनुच्छेद 21 के अनुसारः- 

किसी भी व्यक्ति को विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अतिरिक्त उसके जीवन और शरीर की स्वतंत्रता के अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता ।

अनुच्छेद 21(क) 

के अनुसार 86वें संविधान संशोधन अधिनियम 2002 के तहत 6 से 14 वर्ष तक के बच्चों को अनिवार्य और निशुल्क शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार दिया गया है ।



अनुच्छेद 22 के अनुसार :-

किसी भी व्यक्ति को बिना कारण बताए गिरफ्तार नहीं किया जा सकता और गिरफ्तार व्यक्ति को 24 घण्टे के अन्दर मजिस्ट्रेट के सामने पेश करना अनिवार्य है ।




3.शोषण के विरू़द्ध अधिकार (23,24) –

अनुच्छेद 23 के अनुसार:- 

मानव व्यापार व बेगार तथा बलात श्रम पर प्रतिबंध लगाया गया है । लेकिन राज्य सार्वजनिक उद्देश्यों के लिए सार्वजनिक सेवा या श्रम योजना लागू कर सकती है। राज्य इस सेवा में धर्म, मूलवंश, जाति या वर्ग के आधार पर कोई भेदभाव नहीं करेगा। बंधुआ मजदूरी समाप्त करने के लिए 1975 में बंधुआ मजदूरी का उन्मूलन अधिनियम पारित किया गया ।


अनुच्छेद 24 के अनुसार:- 

बाल श्रम का निषेध किया गया है जिसके अनुसार 14 वर्ष से कम उम्र के किसी भी बच्चे को कारखानो, खदानों या खतरनाक कार्यों में नहीं लगाया जा सकता ।




4. धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकारः- (25 से 28 तक) –

अनुच्छेद 25 के अनुसार:- 

देश के प्रत्येक नागरिक को किसी भी धर्म को मानने व आचरण करने और प्रचार करने का अधिकार है ! लेकिन सार्वजनिक व्यवस्था व समाज कल्याण एवं सुधार आदि के अन्र्तगत इस पर रोक लगाई जा सकती है।


अनुच्छेद 26 के अनुसार:- 

धार्मिक प्रयोजन के लिए संस्था बनाने, उसका पोषण करने और धार्मिक कार्यों के प्रबन्ध के लिये सम्पत्ति अर्जित करने का अधिकार है ।


अनुच्छेद 27 के अनुसारः- 

किसी भी व्यक्ति को किसी धर्म या सम्प्रदाय विशेष के पोषण हेतु कर देने के लिए बाध्य नहीं किया जाएगा ।


अनुच्छेद 28 के अनुसारः- 

राज्य निधि से वित्त पोषित या आर्थिक सहायता प्राप्त शिक्षण संस्थाओं में धार्मिक शिक्षा नहीं दी जाएगी और न ही किसी व्यक्ति को धार्मिक शिक्षा या धार्मिक अनुष्ठान में भाग लेने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता।




5. संस्कृति और शिक्षा सम्बन्धी अधिकार (29से 30 तक) 

अनुच्छेद 29 के अनुसार:- 

देश के प्रत्येक नागरिक को अपनी भाषाए लिपि या संस्कृति को सुरक्षित रखने का पूर्ण अधिकार होगा ! राज्य द्वारा आर्थिक सहायता प्राप्त किसी भी शिक्षण संस्था में किसी भी नागरिक को धर्म व मूलवंश व जाति और भाषा आदि के आधार पर प्रवेश लेने से वंचित नही किया जा सकता ।


अनुच्छेद 30 के अनुसारः- 

धर्म या भाषा पर आधारित सभी अल्प संख्यक वर्गो को अपनी पसंद की शिक्षण संस्थाओं की स्थापना करने और प्रशासन का अधिकार होगा और राज्य इस आधार पर शिक्षा संस्थाओ को आर्थिक सहायता देने के लिए कोई विभेद नही करेगा ।




6.संवैधानिक उपचारों संबंधी मूलाधिकार-(32,33,34 और 35)-

  संवैधानिक उपचारों सम्बन्धी मूलाधिकार का प्रावधान अनुच्छेद 32-35 तक किया गया है  लेकिन इनमें से अनुच्छेद- 32 बहुत जरूरी है। यह स्वयं में मूल अधिकार माना जा सकता है क्योंकि यह नागरिकों के मूल अधिकारों की रक्षा करता है। संविधान के भाग- 3 में मूल अधिकारों का वर्णन है।यदि मूल अधिकारों का राज्य द्वारा उल्लंघन किया जाता है तो राज्य के विरुद्ध न्याय पाने के लिए संविधान के अनुच्छेद - 32 के अंतर्गत  उच्चतम_न्यायालय में और अनुच्छेद - 226 के अधीन  उच्च न्यायालय में  रिट (writ) याचिका दाखिल करने का अधिकार नागरिकों को प्रदान किया गया है । अनुच्छेद - 32 के अनुसार उच्च और सर्वोच्च न्यायालय 5 प्रकार की रिट जारी करती है। उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय ही ऐसी रिट जारी कर सकते हैं। उच्चतम न्यायालय पूरे देश के लिए रिट जारी कर सकता है जबकि जबकि उच्च न्यायालय केवल राज्य में। संविधान में निम्नलिखित आदेशों का उल्लेख

 (Types of Writs issued by Courts) है –


1.बंदी प्रत्यक्षीकरण - 

इसमें किसी को अगर हिरासत में रखा गया है तो उसे प्रस्तुत करने से संबंधित रिट है। इसमें उसे  तुरंत न्यायालय के सामने हाजिर करना होता है।अगर उस पर अपराध सिद्ध होता है, तभी उसकी हिरासत बढ़ाई जा सकती है वरना उसे छोड़ दिया जाता है। कोर्ट इसे किसी भी व्यक्ति के लिए जारी कर सकता है।


2.परमादेश - 

यह रिट सिर्फ सरकारी अधिकारी के खिलाफ ही जारी किया जा सकता है। वह भी तब जब सरकारी अधिकारी ने अपने कानूनी कर्तव्य का पालन न किया हो और इसके चलते किसी दूसरे के अधिकारों का हनन हुआ हो। कोर्ट संबंधित व्यक्ति से इसमें पूछता है कि कोई कार्य आपने क्यों नहीं किया है?

   लेकिन यह रिट निजी व्यक्ति, गैर संवैधानिक निकाय, विवेकानुसार लिए गए निर्णय, कांट्रैक्ट पर रखे गए लोगों, राष्ट्रपति और राज्यपालों और उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीशों के खिलाफ जारी नहीं की जा सकती है।


3.प्रतिषेध -

यह केवल  कोर्ट से संबंधित लोगों के खिलाफ ही जारी किया जाता है। जब उनके किसी को गलत तरीके से फायदा पहुंचाने की बात सामने आती है तो  हाईकोर्ट या  सुप्रीम कोर्ट इसका प्रयोग करते हैं। इसका प्रयोग केवल विचाराधीन मामले में ही होता है यानि जब मामले की सुनवाई चल रही होती है। यह बड़ा कोर्ट, छोटे कोर्ट के खिलाफ जारी कर सकता है।


4.उत्प्रेषण - 

यह भी प्रतिषेध के जैसा ही है। इसका मतलब होता है "प्रमाणित होना" या " सूचना_देना"। इसे उच्च न्यायालय  अधीनस्थ न्यायालयों या  प्राधिकरणों के खिलाफ ही जारी किया जाता था। लेकिन  1991 से इसे  प्रशासनिक प्राधिकरणों के खिलाफ भी जारी किया जाने लगा है। यह  विधिक निकायों या  निजी व्यक्तियों के विरुद्ध जारी नहीं किया जा सकता है। इसमें कोर्ट किसी सरकारी प्रक्रिया से जुड़ी पूछताछ करता है।


5.अधिकार पृच्छा - 

यह सुनिश्चित करने के लिए जारी किया जाता है कि किसी पद पर बैठा हुआ सरकारी कर्मचारी उस पद पर बने रहने के योग्य भी है या नहीं? जिसके खिलाफ यह रिट जारी हुई है, उसे साबित करना पड़ता है कि वह पद उसने  गैरकानूनी तरीके से हासिल नहीं किया है। अर्थात् इस रिट (writ) द्वारा न्यायालय लोकपद पर किसी व्यक्ति के दावे की वैधता की जाँच करता है। 


    इस रिट के माध्यम से किसी लोक पदधारी को अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर जाकर आदेश देने से रोका जाता है। जरूरी भी नहीं कि कोई पीड़ित व्यक्ति ही इस रिट को दायर करे, कोई भी इसको दायर कर सकता है।



मौलिक अधिकारों का निलम्बन –



अनुच्छेद 33 संसद को यह शक्ति प्रदान करती है वि वह स्वतंत्र बलों, अद्धसैनिक बलों, खूफिया ऐजेन्सियों के सदस्यों के संबंध में मौलिक अधिकारो को प्रतिबंधित कर सकती है। ताकि वे अपने कर्तव्यों का उचित पालन कर सकें और उनके अनुशासन बना रहे।


अनुच्छेद 34 मौलिक अधिकारों पर तब प्रतिबंध लगाता है जब भारत में कही भी सेना विधि (मार्शल लाॅं) लागू हो मार्शल लाॅं के क्रियान्वयन के समय सैन्य प्रशासन के पास जरूरी कदम उठाने के लिए असाधारण अधिकार मिल जाते हैं वे अधिकारों पर प्रतिबंध यहाॅं तक कि किसी मामले में नागरिकों को मृत्युदंड तक लागू कर सकता है।


अनुच्छेद 352 के तहत राष्ट्रपति द्वारा राष्ट्रीय आपात की घोषणा होने पर उसके द्वारा अनुच्छेद 359 के तहत सभी मौलिक अधिकार निलम्बित किये जा सकते हैं । परन्तु 44वें संविधान संशोधन के पश्चात अनुच्छेद 20 व 21 किसी भी स्थिति में निलबिंत नही किये जा सकते ।



नोट :अनुच्छेद – 15,16,19,29 व 30 के अन्तर्गत प्राप्त मौलिक अधिकार केवल भारतीय नागरिकों के लिए है । जबकि शेष सभी अधिकार सभी व्यक्तियों के लिये हैं ।

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