क्या है न्यूक्लियर बटन, जिसे दबाते ही चंद मिनटों में तबाह हो सकती है पूरी दुनियां?

न्यूक्लियर फुटबाल एक ब्रीफकेस है जो अमेरिकी राष्ट्रपति के साथ चलता है। इसका उपयोग करके वो पूरी दुनिया में परमाणु हमला कर सकते हैं।  दुनिया के दो सबसे चर्चित न्यूक्लियर ब्रीफकेस हैं अमरीका का ‘फुटबॉल’ और रूस का ‘चेगेत.’आइए विस्तार से समझते हैं क्या है न्यूक्लियर बटन जिसे दबाते ही दुनिया हो जाएगी तबाह?


By: Arvind Kumar Pandey





परमाणु बम एक बटन से दग जाए, ऐसा सिस्टम दुनिया में कहीं नहीं होता. परमाणु बम चाहे जितनी खस्ता क्वॉलिटी के हों, उन्हें चला देने पर हज़ारों लोगों की जान जा सकती है. और पीढ़ियों तक विस्फोट का असर भी रहता है. बड़ी ज़िम्मेदारी वाली बात होती है. इसलिए ऐसा सिस्टम अमूमन हर देश में बनाया जाता है  कि एक अकेले आदमी की कोहनी टिफिन खाते-खाते किसी मासूम बटन पड़ जाए और परमाणु बम चल जाए, ऐसा न हो.


परमाणु हमले का घातक असर लंबे समय तक रहता है. हिरोशिमा में हुए परमाणु हमले में झुलसा एक शख्स.


बटन जैसा न्यूक्लियर बटन भले न हो. लेकिन परमाणु हमला करने के लिए पोर्टेबल जुगाड़ ज़रूर होते हैं. ये आमतौर पर एक ब्रीफकेस जितने बड़े होते हैं. इसलिए इन्हें न्यूक्लियर ब्रीफकेस कह दिया जाता है. न्यूक्लियर हमले की इजाज़त देने वाला आमतौर पर राष्ट्राध्यक्ष होता है. अब राष्ट्राध्यक्ष पूरे समय किसी बंकर में बैठकर न्यूक्लियर हमला करने को तैयार नहीं रह सकते, उन्हें तो मोदी जी की तरह पूरी दुनिया नापनी पड़ती है. इसलिए न्यूक्लियर ब्रीफकेस बनाए गए. ताकि ज़रूरत पड़ने पर दुनिया के किसी भी कोने से परमाणु हमला किया जा सके या उसका जवाब दिया जा सके.

दुनिया के दो सबसे चर्चित न्यूक्लियर ब्रीफकेस हैं अमरीका का ‘फुटबॉल’ और रूस का ‘चेगेत.’



‘फुटबॉल’


अमेरिका पूरी द‍ुनिया में अपनी परमाणु शक्‍तियों के लिए भी जाना जाता है. अमेरिका में न्यूक्लियर बटन को 'न्यूक्लियर फुटबॉल' कहा जाता है. ‘फुटबॉल’ बस नाम का फुटबॉल है. है ये एल्युमीनियम का एक ब्रीफकेस है, जो चमड़े के एक कवर में रखा रहता है.एक ब्रीफकेस में सिंबोलिक तौर पर जब भी अमेरिका का राष्ट्रपति कहीं जाता है या व्हाइट हाउस में होता है तो उसके साथ ये फुटबॉल भी होता है. बताते हैं कि उस काले रंग के ब्रीफकेस में एक सिस्टम होता है, जिसमें लांच कोड डालना होता है.

वैसे बता दें कि तकनीकी तौर पर ऐसा कोई बटन नहीं है. अमेरिका में कुछ तयशुदा नियमों व प्रक्रियाओं के पालन और हाइटेक इक्विपमेंट्स के जरिए राष्‍ट्रपति सेना को न्यूक्लियर हमले का निर्देश दे सकता है. इन इक्विपमेंट्स के इस्तेमाल का मकसद यही है कि अमेरिकी सेना इस बात की पुष्टि कर सके कि आदेश देने वाले खुद उनके कमांडर इन चीफ यानी राष्‍ट्रपति हैं.

वैसे अमेरिका में क‍िसी भी युद्ध की घोषणा करने का अधिकार अमेरिकी कांग्रेस के पास होता है. ये अध‍िकार पूरी तरह राष्ट्रपति के पास नहीं होता है. लेकिन इत‍िहास में कुछ राष्ट्रपतियों ने आधिकारिक तौर पर जंग का ऐलान न करते हुए सैन्य टुकड़ियों को मोर्चे पर भेजा है

अब तक अमेरिकी कांग्रेस ने सिर्फ पांच बार जंग का ऐलान किया है. वहीं राष्ट्रपतियों ने बिना जंग की घोषणा किए 120 बार से ज्यादा सेना को जंग में भेजा है.



ब्रीफकेस में क्‍या होता है

अमेरिकी राष्ट्रपति के साथ चलने वाले काले रंग का ब्रीफकेस में काफी कुछ होता है. इसमें युद्ध के तैयार प्‍लान से लेकर हमले की मंजूरी देने के कम्प्यूटर कोड्स और कम्यूनिकेशन डिवाइस होते हैं. इसका वजन करीब 20 किलो होता है.

1980 में ब्रेकिंग कवर नाम से एक किताब आई थी. इसे लिखा था वाइट हाउस मिलिटरी ऑफिस के डायरेक्टर रहे बिल गली ने. इसके मुताबिक फुटबॉल में चार चीज़ें रहती हैं.


अमरीकी राष्ट्रपतियों के पास रहने वाला न्यूक्लियर फुटबॉल


‘ब्लैक बुक’ – इसमें अमरीका पर परमाणु हमला हो जाने की स्थिति में जवाबी हमला करने का तरीका लिखा होता है.

एक और किताब, जिसमें खुफिया ठिकानों की जानकारी होती है.

एक फोल्डर जिसमें एमरजेंसी ब्रॉडकास्ट सिस्टम से जुड़ी जानकारी देते कागज़ होते हैं.

एक कार्ड जिसपर ऑथेंटिकेशन कोड लिखे रहते हैं. इसे बिस्किट कहते हैं.


फुटबॉल हमेशा अमेरिकी राष्ट्रपति के साथ चलने वाले एक ‘मिलिटरी एड’ के हाथ में रहता है. इसलिए कई बार तस्वीरों में आ जाता है. एक बार तो एक शख्स ने फुटबॉल पकड़े मिलिटरी एड के साथ सेल्फी भी ले ली थी. राष्ट्रपति वाइट हाउस में हों, कार में, हवाई यात्रा पर हों या विदेश में, यह सूटकेस हमेशा उनके साथ होता है. राष्ट्रपति का ये सहयोगी उनके साथ एक ही लिफ्ट में चलता है और उसी होटल में ठहरता है, जहां वे ठहरे हों. राष्ट्रपति को सुरक्षा देने वाले सीक्रेट सर्विस के अधिकारी राष्‍ट्रपति के साथ साथ ब्रीफकेस लेने वाले व्‍यक्‍त‍ि की सुरक्षा की जिम्‍मेदारी भी उठाते हैं. सूटकेस एक लेदर स्ट्रैप के जरिए उसके हाथों से बंधा होता है.

कभी-कभार होता है कि फुटबॉल प्रेसिडेंट से बिछड़ जाता है. जब रॉनल्ड रीगन पर जानलेवा हमला हुआ था, तब उनका काफिला तेज़ी से आगे निकल गया था और फुटबॉल पीछे छूट गया था. रीगन को गोली लगी थी. जब एमरजेंसी रूम में रीगन के कपड़े काटे गए तो उनमें से ऑथेंटिकेशन कोड वाला कार्ड नीचे गया जहां उनके जूते पड़े थे. ये बात बाहर लोगों की खुसुर-फुसुर में बदलकर ये हो गई कि रीगन कार्ड अपने जूते में लेकर चलते हैं. बाद में कार्ड भी फुटबॉल के अंदर ही रखे जाने लगे.

बताया जाता है कि इस ब्रीफकेस मे ही एक बिस्किट नुमा कार्ड होता है, जिस पर न्यूक्लियर लॉन्च कोड्स लिखे होते हैं. इस कार्ड को अमेरिकी राष्ट्रपति हमेशा अपने पास रखते हैं. राष्ट्रपति के असमर्थ होने पर किसी भी भयानक स्थिति से निपटने के लिए ऐसा ही एक न्यूक्लियर फुटबॉल उप राष्ट्रपति के पास भी होता है.

ऐसा कहा जाता है क‍ि अमेरिकी राष्ट्रपति के न्यूक्लियर हमला शुरू करने के अधिकार पर रोक लगाने की कोई व्यवस्था नहीं है. फिर भी कुछ तरीके ऐसे हैं जिनके जरिए उनके फैसले की रफ्तार को धीमा किया जा सकता है. अगर ऐसा लगता है कि अमेरिका पर न्यूक्लियर हमले का खतरा है तो इसकी गंभीरता को आंकते हुए जवाबी कार्रवाई का फैसला करने के लिए राष्ट्रपति के पास कुछ मिनटों का ही वक्त होता है.

इन चंद मिनटों में राष्‍ट्रपति के एक इशारे पर 925 न्यूक्लियर बम पूरी दुनिया में तबाही मचाने के लिए लॉन्च हो सकते हैं. ये बम हिरोशिमा में फटे बम से 17 हजार गुना ज्यादा तबाही मचा सकते हैं. अमेरिकी राष्ट्रपति चाहें तो न्यूक्लियर हमले की पहल भी कर सकते हैं. लेकिन ये इतना भी आसान नहीं है, इसके लिए राष्‍ट्रपति को एक तय कानूनी प्रक्र‍िया से गुजरना होता है.

फुटबॉल पकड़े वाइट हाउस का एक मिलिटरी एड.



चेगेत

चेगेत रूस का ‘फुटबॉल’ है. इसका नाम माउंट चेगेत के नाम पर पड़ा है. रूस में जब नया राष्ट्रपति चुना जाता है (पुतिन के आने के बाद से ये चलन धीमा, बहुत धीमा पड़ गया है) तो पुराना राष्ट्रपति उसे चेगेत एक सेरेमनी में सौंपता है. गोरबाचेव के ज़माने में लाया गया चेगेत पुतिन ने ही सबसे ज़्यादा संभाला है. चेगेत रूस की सामरिक परमाणु सेना के कमांड एंड कंट्रोल सिस्टम का हिस्सा होता है.

अब तक बस एक बार ऐसा हुआ है कि चेगेत को इस्तेमाल में लाया गया हो. 25 जनवरी, 1995 को नॉर्वे में नॉर्वे के और अमरीकी साइंटिस्ट्स ने मिलकर एक रॉकेट दागा. रूस को लगा कि दग गया परमाणु बम. तब चेगेत को इस्तेमाल में लाकर हमले की तैयारी शुरू हो गई थी. लेकिन वक्त रहते बात साफ हो गई. और दुनिया बच गई.


2012 में जब पुतिन रूस के राष्ट्रपति बने (फिर एक बार!) तो उन्हें एक समारोह में चेगेत थमाया गया. (फोटोः विकिमीडिया कॉमन्स)


और भारत…

अगर आपने स्टोरी यहां तक पढ़ ली है, और जानना चाहते हैं कि भारत के न्यूक्लियर ब्रीफकेस को क्या कहते हैं और वो किसके पास रहता है, तो हमें सॉरी कहना पड़ेगा. क्योंकि अपने परमाणु हमले का सारा लेन-देन न्यूक्लियर कमांड अथॉरिटी के पास रहता है. इसके अध्यक्ष प्रधानमंत्री होते हैं. अब ये काम कैसे करती है, ये किसी को बताया नहीं जाता. इसलिए हम भी नहीं बताएंगे. क्योंकि हम भी नहीं जानते.

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