... जब बंटवारे के बाद भी पाकिस्तान में चलता था भारतीय रुपया, आरबीआई गवर्नर के होते थे हस्ताक्षर! जानिए विस्तार से...

भारत-पाकिस्तान के बंटवारे के बाद भी कुछ समय तक आरबीआई ही दोनों देशों के सेंट्रल बैंक के तौर पर काम करता था. उस वक्त दोनों देशों के लिए नोटों की छपाई नासिक रोड स्थित 'सिक्योरिटी प्रिंटिंग प्रेस' में होती थी.

पाकिस्तानी रुपया जिसपर आरबीआई गवर्नर सी डी देशमुख ले हस्ताक्षर हैं! 

भारत और पाकिस्तान को आजाद हुए इस बार 74 साल पूरे हो गए हैं और दोनों देश अपना 75वां स्वाधीनता दिवस मनाया है। दोनों देश कभी एक थे, लेकिन धर्म के आधार पर हुए इस बंटवारे के बाद भी कई ऐसी चीजें हैं जिनमें पर भारतीयों को गर्व होना चाहिए। इनमें से एक पाकिस्तान का रुपया भी है। 

भारत और पाकिस्तान के बंटवारें की हम सभी ने बहुत कहानियां सुनी हैं. इन सभी कहानियों से ये तो साफ हो गया था कि दोनों देशों के बीच बंटवारें की यह लकीर अचानक खींची गई थी, जिसकी वजह से बड़ी संख्या में लोगों की जानें गईं. कई लोगों और उनकी पीढ़ियों के लिए भावनात्मक स्तर पर ये कहानियां बेहद संवेदनशील हैं. लेकिन जहां तक दोनों सरकारों की बात रही, इस बंटवारे के अपने कारण रहे और उस वक्त के सबसे बेहतरीन ढंग से इसे अंजाम दिया गया. करीब 200 साल तक ब्रिटिश हुकुमत के राज के बाद 14 अगस्त को पाकिस्तान आजाद हुआ और 15 अगस्त को भारत में आजादी का पहला जश्न मनाया गया.

इस दौरान बंगाल, पंजाब, रेलवे, डिफेंस फोर्स से लेकर केंद्रीय खजाने तक का बंटवारा हुआ. लेकिन, आजादी के बाद भी पाकिस्तान को भारतीय करेंसी का इस्तेमाल करना पड़ा. हालांकि, पाकिस्तान के लिए प्रिंट होने वाले नोटों पर ‘पाकिस्तान’ की मुहर लगती थी.



1948 तक भारत में छपते थे पाकिस्तानी नोट

15 अगस्त 1947 को आजादी मिलने के बाद मार्च 1948 तक केवल भारतीय नोट ही पाकिस्तान में चलते थे । 1 अप्रैल 1948 से पाकिस्तान में भारत में चल रहे सभी तरह के नोटों के सर्कुलेशन को बंद कर दिया। इसके स्थान पर भारत सरकार और भारतीय रिजर्व बैंक ने 1 अप्रैल 1948 से पाकिस्तान सरकार के लिए नोट छापना शुरू किया। इन नोटों का प्रयोग केवल पाकिस्तान में ही हो सकता था। 

1948 तक पाकिस्तान के लिए भारत में छपने वाले नोटों और सिक्कों पर ‘Government of Pakistan’ का स्टैम्प होता था. इन नोटों का इस्तेमाल केवल पाकिस्तान में ही हो सकता था. पाकिस्तान में नये सिक्के और नोट, अप्रैल 1948 से छपने शुरू हुए. 1 अप्रैल 1948 को भारतीय रिज़र्व बैंक और भारत सरकार ने पाकिस्तान सरकार के लिए प्रोविज़नल नोट छापना शुरू किया, जिनका इस्तेमाल केवल पाकिस्तान में ही हो सके.



आरबीआई गवर्नर के होते थे साइन

पाकिस्तान के लिए तैयार किए यह नोट नासिक स्थित सिक्युरिटी प्रेस में छपते थे। नोट पर आरबीआई के गवर्नर के ही साइन होते थे।उस दौरान आरबीआई गवर्नर सी डी देशमुख थे और पाकिस्तानी रुपये पर उन्हीं के हस्ताक्षर होते थे. नोट पर अंग्रेजी व उर्दू में गवर्नमेंट ऑफ पाकिस्तान और हुकूमत-ए-पाकिस्तान लिखा होता था। 

इन नोटों की छपाई नासिक के ‘सिक्योरिटी प्रिंटिंग प्रेस’ में होती थी. आजादी के करीब दो दशक पहले यानी 1928 में ही भारत में पेपर करेंसी की छपाई शुरू हुई थी. अविभाजित भारत में यही एक प्रिंटिंग प्रेस था, जहां नोटों की छपाई होती थी. उस दौरान नासिक प्रिंटिंग प्रेस की क्षमता 40 लाख नोट प्रति दिन छापने की थी. माना जाता है कि 1948 तक दोनों देशों में इंडियन करेंसी का ही इस्तेमाल होता था. शुरुआत में भारत और पाकिस्तान को नये नोट डिज़ाइन करने में कुछ समय लगा था.


इन नोटों की होती थी छपाई

तब आरबीआई 1,5,10 और 100 रुपये के पाकिस्तानी नोट छापता था। पाकिस्तान की सरकार 1953 से लेकर के 1980 तक एक रुपये का नोट खुद ही जारी करता रहा। 



1953 तक चले भारत में छपे नोट

पाकिस्तान में 1953 तक भारत से ही करेंसी नोट छपकर आते रहे। इसी साल पाकिस्तान के सेंट्रल बैंक स्टेट बैंक ऑफ पाकिस्तान (एसबीपी) ने देश में खुद नोट छापना शुरू किया था। 15 जनवरी 1952 को इनकी नोटबंदी कर दी गई.



दोनों देशों के लिए केंद्रीय बैंक का काम करता था आरबीआई

आरबीआई उस दौरान भारत और पाकिस्तान – दोनों देशों के लिए नोटों की छपाई करता था. दरअसल, बंटवारे के तुरंत बाद पाकिस्तान के लिए संभव नहीं था कि वो एक सेंट्रल बैंक बना सके. इसके बाद दोनों देशों ने एक सहमति पर समझौत किया है, जिसका नाम ‘मोनेटरी सिस्टम एंड रिज़र्व बैंक ऑर्डर 1947’ था. इसमें समझौता हुआ कि आरबीआई ही सितंबर 1948 तक पाकिस्तान के लिए सेंट्रल बैक का काम करेगा. हालांकि, पाकिस्तान के सेंट्रल बैंक के तौर पर आरबीआई 1948 में तय समय से पहले ही अपनी ड्यूटी को खत्म कर दी. आरबीआई ने यह फैसला तब लिया, जब ठीक एक महीने पहले ‘स्टेट बैंक ऑफ पाकिस्तान’ बन चुका था. उस वक्त आरबीआई के गवर्नर सी डी देशमुख थे. ब्रिटिश राज ने पहली बार 1943 में किसी भारतीय को आरबीआई गवर्नर बनाया था.



पाकिस्तान में 1948 में पहला नोट जारी किया

पाकिस्तान सरकार ने अक्टूबर 1948 में अपना पहला नोट जारी किया था. ये नोट 5 रुपये, 10 रुपये और 100 रुपये के थे. इन नोटों को इंटाग्लियो प्रोसेस के तहत छापा गया था. इस प्रोसेस को लंदन की थॉमस डी ला रूई एंड कंपनी ने तैयार किया था.

स्टेट बैंक ऑफ पाकिस्तान ने सबसे पहले 2 रुपये के नोट छापे थे. मार्च 1949 ने पाकिस्तान सरकार ने 1 रुपये के नोट भी जारी किए. 1953 में स्टेट बैंक ऑफ पाकिस्तान वहां की सरकार की ओर से नोट छापने का पूरा जिम्मा ले लिया. हालांकि, 1980 के दशक तक पाकिस्तान सरकार 1 रुपये के नोट छापने का काम करती थी.



भारत पर है पाकिस्तान का कर्ज

एसबीपी के अनुसार भारत सरकार और आरबीआई ने आजादी मिलने के इतने सालों बाद भी उसका कर्ज अदा नहीं किया है। 1947 में आरबीआई को पाकिस्तान की नई सरकार को 55 करोड़ रुपये देने थे, जो आज तक नहीं दिए गए हैं। अब एसबीपी के अनुसार यह कर्जा बढ़कर के 5.6 बिलियन रुपये के करीब पहुंच गया है। 


अब है दोगुना अंतर

अगर पाकिस्तानी और भारतीय रुपये की डॉलर से तुलना करें तो इसमें जमीन-आसमान का अंतर है। डॉलर के मुकाबले पाकिस्तानी रुपया आज की तारीख में 130 के स्तर पर है। वहीं भारतीय रुपया 68 के स्तर पर है। यह साफ बताता है कि भारत की अर्थव्यवस्था कितनी मजबूत स्थिति में है। 

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